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नूह की निशानी

हम तारीक़ी सिलसिले को शुरू से जारी रखेंगे (मिसाल के तौर पर आदम/हव्वा और काबील/हाबील) और अब तौरेत में हमारा अगला तवज्जो के क़ाबिल न्काबी है नूह (अलैहिस्सलाम) जो आदम के ज़माने के 1600  बाद रहा करता था। बहुत से लोग मशरिक में नूह (अलैहिस्सलाम) की कहानी को जानते हैं और इनकार न करने लायक़ सैलाब की  बाबत कहानी को भी जानते हैं। मगर दुनिया तिलछट के तौर पर चट्टानों से ढका हुआ है जो कि कहा जाता है कि ऐसा सैलाब के दौरान ही तिलछट के जमा होने ज़रिये शक्ल इख्तियार करता है। सो हमारे पास इस सैलाब का माद्दी सबूत मौजूद है मगर सवाल यह है कि नूह की क्या निशानी थी जिस पर हमको गौर करने की ज़रुरत है? अब नूह (अलैहिस्स्सलाम)के बयान को तौरात और कुरान में पढ़ने के लिए यहां पर किलिक करें-

ग़ैब हो जाना  मुक़ाबिल  रहम हासिल करना

जब मैं मशरिकी लोगों से अल्लाह के इंसाफ़ की  बात करता हूँ तो अक्सर मुझे कुछ इस तरह के जवाब सुनने को मिलते हैं,  “मैं इंसाफ़ के लिए इतना ज़ियादा फ़िकर मंद नहीं हूँ क्यूंकि अल्लाह इतना ज़ियादा रहम करने वाला है कि मैं नहीं सोचता कि वह सच मुच मेरा इंसाफ़ करेगा।” यह वह नूह (अलैहिस्स्स्लाम) का बयान है जो एक सबब के लिए सवाल खड़ा करता है। जी हाँ। अल्लाह बहुत ज़ियादा रहम करने वाला है। वह अपने सिफ़त में बदलता नहीं है, और इस में कोई शक नहीं कि वह नूह (अलैहिस्स्सलाम) के ज़माने में भी रहम करने वाला था। इस्के बावजूद भी (नूह और उसके खानदान को) छोड़ तमाम दुनया अल्लाह के इंसाफ़ के तहत तबाह व बर्बाद हो गयी थी। 

अपने पापों के कारण वे डूब गए और उन्हें आग में डाल दिया, और उन्होंने अपने लिए अल्लाह [कोई भी] मददगार नहीं पाया सूरा नूह

सूरा 71 – नूह हमें बताती है कि

तो फिर उस का इंसाफ़ कहां गया? उसका इंसाफ़ उस कश्ती में मौजूद था। जिस तरह हम कुरान शरीफ़ में पढ़ते हैं:

            हम (अल्लाह) ने उसे (नूह पीबीयूएच) दिया, और उन लोगों को आर्क में

द हाइट्स 7:64

अल्लाह ने अपने रहम में होकर नबी नूह (अलैहिस्सलाम) का इसतेमाल करते हुए एक कश्ती का इन्तिज़ाम किया जो किसी के लिए भी दस्तियाब था। हर कोई उस कशती में दाखिल हो सकता था और खुद के लिए रहम और मह्फूज़ियत को हासिल कर सकता था। मगर एक संजीदा मसला यह था कि नूह के खानदान को छोड़ तक़रीबन सब लोग ख़ुदा के पैग़ाम पर ईमान नहीं लाए थे। और ईमान लाना तो दूर उल्टा नूह (अलैहिस्सलाम) का मज़ाक़ उड़ाया और आने वाले इंसाफ़ की बाबत भरोसा नहीं किया। अगर यह सब न करते हुए सिर्फ़ कश्ती में दाखिल भी हो जाते तो वह लोग अल्लाह के इंसाफ़ से बच जाते।

कुरान शरीफ़ की इबारत भी हमसे कहती है कि नूह का एक बेटा अल्लाह पर और उसके इंसाफ़ पर ईमान नहीं लाया था। हक़ीक़त में वह एक पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। वह सोच रहा था कि ऐसा करके वह अल्लाह के इंसाफ़ से बच जाएगा। मगर फिर से यहाँ पर एक परेशानी थी। वह अपने ईमान को मख्सूसियत के साथ जोड़ नहीं पाया था और इस चुनाव का फ़ैसला नहीं कर पाया था। उसने इंसाफ़ से बचने के लिए अपने तरीके का इस्तेमाल किया। मगर उस के बाप ने उससे कहा:

“आज के दिन तुझे अल्लाह के हुक्म से कोई चीज़ बचा नहीं सकती मगर उन्हीं को जिन पर उसने अपना रहम ज़ाहिर किया      है!”

हूद 11:43

उस बेटे को अल्लाह के रहम की सख्त ज़रुरत थी न कि खुद की अपनी कोशिश जो उसे इंसाफ़ से बचा सकती थी। दर हक़ीक़त पहाड़ पर चढ़ने की उस की कोशिश फुज़ूल और बे हासिल था। इसलिए इस का अंजाम भी उन लोगों के साथ ही था जो नूह (अलैहिस्सलाम) का मज़ाक़ उड़ाते थे। और उनका मज़ाक़ उन्हें पानी में डूब कर मरने पर मजबूर किया।  यह सब कुछ करने से बेहतर अगर वह अपने बाप के साथ कश्ती में दाखिल हो जाता तो अल्लाह के इंसाफ से बच सकता था। इस बयान से हम मालूम कर सकते हैं कि सिर्फ़ अल्लाह पर और उसके इंसाफ़ पर ईमान लाना ही काफ़ी नहीं था कि सैलाब से बच जाते। दर असल अल्लाह जो रहम इनायत करता है उस के लिए मखसूस हो जाना य सुपुर्द करना भी ज़रूरी होता है बनिस्बत इस के कि हमारे अपने ख़यालात को इस में शामिल करें कि हम यकीनी तौर से अल्लाह के रहम को हासिल कर लेंगे। सो – कश्ती हमारे लिए ‘नूह’ की निशानी है। सच पूछा जाए तो यह सरे आम यानी कि खुल्लम खुल्ला अल्लाह के इंसाफ़ की निशानी थी और साथ ही बचने और उस के रहम का ज़रिया भी था। क्यूंकि नूह के जमाने के लोगों में से हर किसी ने उस किश्ती को तैयार होते हुए देखा था। इस लिए यह आने वाले इंसाफ़ का और रहम की दस्तियाबी दोनों के लिए ‘खुल्लम खुल्ला’ निशानी था। मगर यह दिखता है कि उस के रहम का हुसूल उस फ्राह्मी के ज़रिये ही मुमकिन था जिसे अल्लाह ने पहले से इंतज़ाम किया हुआ था।

सो नूह ने अल्लाह के रहम व फ़ज़ल को क्यूँ हासिल किया? तौरेत बहुत बार इस मुहावरे को दोहराती है कि

            “नूह ने उन सब कामों को अंजाम दिया जो खुदावंद ने उसे हुक्म दिया था”

मैं यह पाता हूँ कि मैं उसी काम को करने पर माइल होता हूँ जो मैं समझता हूँ या जो मैं चाहता हूँ या जिस से मैं राज़ी होता हूँ।  मुझे यकीन है कि – नूह (अलैहिस्सलाम) के दिल में भी सैलाब के आने की इतला (तंबीह) और सूखी ज़मीन पर एक बड़ी कश्ती के तामीर के लिए अल्लाह के हुक्म को लेकर कई एक सवाल उस के दिल ओ दमाग में रहे थे होंगे। मगर मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि दीगर लोगों की बनिस्बत नूह एक रास्त्बाज़ शख्स था उसने कश्ती बनाने के मामले में कोई धियान नहीं दिया। मगर उस ने वही सब किया जो उस को अल्लाह की तरफ़ से हुक्म मिला था इस बिना पर नहीं कि उस के बाप ने उसे क्या सिखाया था या इस बिना पर नहीं कि उस ने अपनी ज़िन्दगी में क्या सीखा और समझा था। इस बिना पर नहीं कि उन चीज़ों से जिन से वह मुतमइन था और इस बिना पर भी नहीं कि यह उस के लिए क्या मायने रखता है। सो यह बातें हमारे लिए बड़ी मिसालें यानी कि नमूने हैं जिन के पीछे हमें चलने की ज़रुरत है।

नजात के लिए दरवाज़ा

तौरात हम से यह भी कहती है कि नूह, उसका ख़ानदान और तमाम जानवरों के कश्ती में दाखिल होने के बाद (सवार होने बाद)

            “खुदावंद ने बाहर से उस कश्ती का दरवाज़ा बंद कर दिया था”

पैदाइश 7:16

यह अल्लाह ही था जिसने कश्ती के उस एक दरवाज़े पर काबू रखा हुआ था न कि नूह (अलैहिस्सलाम) ने जब इंसाफ़ की बिना पर ज़मीन पर पानी आया तो बाहर से लोग कश्ती को किसी तरह का नुख्सान नहीं पहुंचा सकते थे न ही उसका दरवाज़ा खोल सकते थे क्यूंकि अल्लाह उस एक दरवाज़े को पूरी तरह से काबू में रखा हुआ था। मगर उसी वक़्त जो अन्दर मौजूद थे वह इस यकीन के साथ आराम से रह सकते थे कि अल्लाह ने कश्ती के दरवाज़े पर काबू कर रखा है इस लिए कोई हवा या मौज उस दरवाज़े को खोल नहीं सकती थी। वह लोग अल्लाह की हिफाज़त और उसके रहम में महफूज़ थे।

इसलिए कि अल्लाह बदलता नहीं है यह बात आज भी हमारे लिए नाफ़िज़ होती है। तमाम नबियों ने ख़बरदार किया है कि एक और इंसाफ़ का दिन आने वाला है। और यह आग के साथ आएगा मगर नूह (अलैहिस्सलाम) की  निशानी हमको यक़ीन दिलाती है कि उस के इंसाफ़ के साथ वह अपना रहम भी पेश करेगा। मगर हमको एक दरवाज़े के साथ उसके कश्ती की राह देखनी है जो हमको रहम हासिल करने की ज़मानत देगा।

अंबिया की क़ुर्बानी

तौरात हमसे यह भी कहती कि

   तब नूह ने यहोवा के लिए एक वेदी बनाई। उसने कुछ शुद्ध पक्षियों और कुछ शुद्ध जानवर  को लिया और उनको वेदी पर परमेश्वर को भेंट के रूप में जलाया।

पैदाइश 8:20

यह आदम/हव्वा और क़ाबील/हाबील के जानवरों कि क़ुर्बानी के नमूने के लिए मुनासिब बैठता है। इस का मतलब यह है कि एक बार फिर एक जानवर की मौत और उस के खून के छाने जाने के ज़रिये नूह (अलैहिस्सलाम) ने दुआ की और अल्लाह के ज़रिये वह दुआ क़बूल की गई। “और ख़ुदा ने नूह और उसके बेटों को बरकत दी” (पैदाइश 9:1) “और नूह के साथ एक अहद बांधा” (पैदाइश 9:8) कि वह आइन्दा से कभी भी पानी के सैलाब के ज़रिये लोगों का इंसाफ नहीं करेगा। तो ऐसा लगता है कि नूह के ज़रिए क़ुर्बानी , मौत और एक जानवर के खून का छाना जाना अल्लाह की इबादत में बहुत दिक्कतें लेकर आ रही थीं। इस के बावजूद भी यह कितनी अहम् बात है। हम तौरेत के नबियों के वसीले से अगली बार लूत के साथ इस जायज़ा को जारी रखेंगे।

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