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हज़रत ए मूसा का निशान 2 शरीअत

हज़रत मूसा के पहले निशान में हम ने देखा ।  फ़सह – जिसमें अल्लाह ने तमाम पह्लोठे बेटों को मरने का हुक्म जारी किया था सिवाए उन के जो घर पर थे ,और उनहोंने एक बर्रा ज़ुबह करके उसके खूनको अपने घरों की चौखट पर लगाया था । फ़िरोंन ने खुद को ख़ुदा के के सुपुर्द नहीं किया था इसलिए उसका पहलोथा मर गया था ।और मूसा जिन को हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) भी कहा जाता है उन्हों ने बनी इस्राईल को मिसर से बाहर निकालने मेंरहनुमाई कीऔरबहरे क़ुल्ज़ुम को पार कराते वक़्त फ़िरोन और उसकी लश्कर को उसमें डुबो दिया था ।

मगर हज़रत मूसा का किरदार नबी होने बतोर ही महदूद नहीं था बल्कि बनी इस्राईल को ज़िन्दगी की एक नै सिम्त की तरफ़ लेजाना था शरीअत के अहकाम के मुताबिक जिसे अल्लाह ने क़ाइम किया था । (सूरा अल – आला 87 – सब से बरतर) हम को यदा दिलाता है कि अल्लाह ने दुनया को बनाया ताकि उसको अपने क़ायदे पर चलाए ।

ऐ रसूल अपने आलिहन परवरदिगार के नाम की तस्बीह करोजिसने (हर चीज़ को) पैदा कियाऔर दुरूस्त किया और जिसने (उसका) अन्दाज़ा मुक़र्रर किया फिर राह बतायीऔर जिसने (हैवानात के लिए) चारा उगायाफिर ख़ुश्क उसे सियाह रंग का कूड़ा कर दिया

सूरा अल – आला 87 :1-5

इसी तरह अल्लाह की मरज़ी है कि बनी इंसान क़वानैन के मातहत होकर चलें ।

मुख़्तसर तोर पर मिसर को छोड़ने के बाद हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) और बनी इस्राईल सीना पहाड़ पर आए । हज़रत मूसा सीना पहाड़ के ऊपर गए , वहां 40 दिन और 40 रात तक अल्लाह की हुज़ूरी में रहे ताकि उस से शरीअत के अहकाम हासिल करे । सूरा अल बक़रा और सूरा अल आराफ़ कि ज़ेल की आयतें इन वाकिआत का हवाला पेश करती हैं ।

और (वह वक्त याद करो) जब हमने (तामीले तौरेत) का तुमसे एक़रार कर लिया और हमने तुम्हारे सर पर तूर से (पहाड़ को) लाकर लटकाया और कह दिया कि तौरेत जो हमने तुमको दी है उसको मज़बूत पकड़े रहो और जो कुछ उसमें है उसको याद रखो

सूरा अल – बक़रा  2:63 – गाय

और हमने मूसा से तौरैत देने के लिए तीस रातों का वायदा किया और हमने उसमें दस रोज़ बढ़ाकर पूरा कर दिया ग़रज़ उसके परवरदिगार का वायदा चालीस रात में पूरा हो गया और (चलते वक्त) मूसा ने अपने भाई हारून कहा कि तुम मेरी क़ौम में मेरे जानशीन रहो और उनकी इसलाह करना और फसाद करने वालों के तरीक़े पर न चलना

सूरा अल – आराफ़ 7:142 – बुलंदियां

सो वह अहकाम क्या थे जो हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) अल्लाह त आला से हासिल किये थे ? हालांकि मुकम्मल अहकाम तो बहुत लम्बी थी (613 अहकाम और क़वानैन जिन में बनी इस्राईल को फ़ैसला करना था कि क्या करना जायज़ था और क्या करना ना जायज़ था । इस बतोर भी कि खाने में कौनसी चीज़ उनके लिए हलाल थी और कौन सी हराम) और यह अहकाम ज़ियादातर तौरात में पाई जाती हैं । इन सब से पहले मूसा ने ख़ास अहकाम अल्लाह त आला से हासिल किये जिन को उसने अपने हाथ से पत्थर कि लोहों पर लिखे थे । इसको दस अहकाम कहा जाता है ।यह दीगर तमाम क़वानैन के लिए बुनयादी क़ानून बन गया ।यह दस हकीकी तोर से बहुत ही अहम् शरअ बतोर क़रार दिया गया – यानी की जो बतोर ए शर्त ए अव्वलीन ज़रूरी हो । सूरा अल आराफ़ की ज़ेल की यह आयत इस का हवाला देती है ।

और हमने (तौरैत की) तख्तियों में मूसा के लिए हर तरह की नसीहत और हर चीज़ का तफसीलदार बयान लिख दिया था तो (ऐ मूसा) तुम उसे मज़बूती से तो (अमल करो) और अपनी क़ौम को हुक्म दे दो कि उसमें की अच्छी बातों पर अमल करें और बहुत जल्द तुम्हें बदकिरदारों का घर दिखा दूँगा (कि कैसे उजड़ते हैं)जो लोग (ख़ुदा की) ज़मीन पर नाहक़ अकड़ते फिरते हैं उनको अपनी आयतों से बहुत जल्द फेर दूंगा और मै क्या फेरूंगा ख़ुदा (उसका दिल ऐसा सख्त है कि) अगर दुनिया जहॉन के सारे मौजिज़े भी देखते तो भी ये उन पर ईमान न लाएगें और (अगर) सीधा रास्ता भी देख पाएं तो भी अपनी राह न जाएगें और अगर गुमराही की राह देख लेगें तो झटपट उसको अपना तरीक़ा बना लेगें ये कजरवी इस सबब से हुई कि उन लोगों ने हमारी आयतों को झुठला दिया और उनसे ग़फलत करते रहे(सूरा अल

आराफ़ 7:145 – 146 – बुलंदियां

दस अहकाम

सो कुरान शरीफ़ सूरा अल आराफ़ में कहता है कि दस अहकाम पत्थर की लोहों पर जो लिखे गए थे यह खुद अल्लाह कि तरफ़ से निशान थे । मगर यह क्या थे ? डर असल वह तौरात शरीफ़ में ख़ुरूज की किताब में दिए गए हैं जिस को हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) ने उन दस अहकाम की तख्तियों से नक़ल की थीं ।

तब परमेश्वर ने ये बातें कहीं,

“मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। मैं तुम्हें मिस्र देश से बाहर लाया। मैंने तुम्हें दासता से मुक्त किया। इसलिए तुम्हें निश्चय ही इन आदेशों का पालन करना चाहिए।

“तुम्हे मेरे अतिरिक्त किसी अन्य देवता को, नहीं मानना चाहिए।

“तुम्हें कोई भी मूर्ति नहीं बनानी चाहिए। किसी भी उस चीज़ की आकृति मत बनाओ जो ऊपर आकाश में या नीचे धरती पर अथवा धरती के नीचे पानी में हो। किसी भी प्रकार की मूर्ति की पूजा मत करो, उसके आगे मत झुको। क्यों? क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ। मेरे लोग जो दूसरे देवताओं की पूजा करते हैं मैं उनसे घृणा करता हूँ। यदि कोई व्यक्ति मेरे विरुद्ध पाप करता है तो मैं उसका शत्रु हो जाता हूँ। मैं उस व्यक्ति की सन्तानों की तीसरी और चौथी पीढ़ी तक को दण्ड दूँगा। किन्तु मैं उन व्यक्तियों पर बहुत कृपालू रहूँगा जो मुझसे प्रेम करेंगे और मेरे आदेशों को मानेंगे। मैं उनके परिवारों के प्रति सहस्रों पीढ़ी तक कृपालु रहूँगा।

“तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के नाम का उपयोग तुम्हें गलत ढंग से नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति यहोवा के नाम का उपयोग गलत ढंग से करता है तो वह अपराधी है और यहोवा उसे निरपराध नहीं मानेगा।

“सब्त को एक विशेष दिन के रूप में मानने का ध्यान रखना। सप्ताह में तुम छः दिन अपना कार्य कर सकते हो। 10 किन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की प्रतिष्ठा में आराम का दिन है। इसलिए उस दिन कोई व्यक्ति चाहे तुम, या तुम्हारे पुत्र और पुत्रियाँ, तुम्हारे दास और दासियाँ, पशु तथा तुम्हारे नगर में रहने वाले सभी विदेशी काम नहीं करेंगे।” 11 क्यों? क्योंकि यहोवा ने छ: दिन काम किया और आकाश, धरती, सागर और उनकी हर चीज़ें बनाईं। और सातवें दिन परमेश्वर ने आराम किया। इस प्रकार यहोवा ने शनिवार को वरदान दिया कि उसे आराम के पवित्र दिन के रूप में मनाया जाएगा। यहोवा ने उसे बहुत ही विशेष दिन के रूप में स्थापित किया।

12 “अपने माता और अपने पिता का आदर करो। यह इसलिए करो कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा जिस धरती को तुम्हें दे रहा है, उसमें तुम दीर्घ जीवन बिता सको”

13 “तुम्हें किसी व्यक्ति की हत्या नहीं करनी चाहिए”

14 “तुम्हें व्यभिचार नहीं करना चाहिए”

15 “तुम्हें चोरी नहीं करनी चाहिए”

16 “तुम्हें अपने पड़ोसियों के विरुद्ध झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए।”

17 “दूसरे लोगों की चीज़ों को लेने की इच्छा तुम्हें नहीं करनी चाहिए। तुम्हें अपने पड़ोसी का घर, उसकी पत्नी, उसके सेवक और सेविकाओं, उसकी गायों, उसके गधों को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। तुम्हें किसी की भी चीज़ को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।”

18 घाटी में लोगों ने इस पूरे समय गर्जन सुनी और पर्वत पर बिजली की चमक देखी। उन्होंने तुरही की ध्वनि सुनी और पर्वत से उठते धूएँ को देखा। लोग डरे और भय से काँप उठे। वे पर्वत से दूर खड़े रहे और देखते रहे।

ख़ुरूज 20 :1-18

अक्सर यह देखा गया है कि हम में से अक्सर जो ग़ैर मज़हबी मुल्कों में रहते हैं वह भूल गए हैं कि यह अहकाम थे यह सलाह मशवरे नहीं थे ।न ही यह शिफ़ाअतनामा हैं / न ही गुफत ओ शनीद से मामला तै करने वाली बात है बल्कि यह वह अहकाम थे कि इनकी इताअत की जाए या इस के लिए सुपुर्द हों ।यह शरीअत के अहकाम थे ,और बनी इस्राईल ख़ुदा के खौफ़ की पाकीज़गी में बंधे हुए थे ।

आज्ञापालन का मानक

सूरा अल हशर (सूरा 59 ।जिलावतन) हवाला देती है कि किसतरह इन दस अहकाम को क़ुरान शरीफ़ के मुकाशिफ़े के म्वाज़िने में दिया गया था । कुरान शरीफ़ के मुक़ाबले में दस अहकाम एक मुक़द्दस पहाड़ पर दिया गया था और जिस वक़्त यह दिया गया था उसवक़त पहाड़ पर एक दहशतनाक नज़्ज़ारा था ।

अगर हम इस क़ुरान को किसी पहाड़ पर (भी) नाज़िल करते तो तुम उसको देखते कि ख़ुदा के डर से झुका और फटा जाता है ये मिसालें हम लोगों (के समझाने) के लिए बयान करते हैं ताकि वह ग़ौर करेंवही ख़ुदा है जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला वही बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है

सूरा अल – हशर 59: 21-22

मगर एक ख़ास सवाल बाक़ी रह जाता है । बनी इसराईल को कितने अहकाम की पाबंदी करनी थी ? ज़ेल कि आयत को देखें जो दस अहकाम के दिए जाने से कुछ ही पहले  की है ।

लोगों ने रपीदीम को छोड़ दिया था और वे सीनै मरुभूमि में आ पहुँचे थे। इस्राएल के लोगों ने मरुभूमि में पर्वत [a] के निकट डेरा डाला। तब मूसा पर्वत के ऊपर परमेश्वर के पास गया। जब मूसा पर्वत पर था तभी पर्वत से परमेश्वर ने उससे कहा, “ये बातें इस्राएल के लोगों अर्थात् याकूब के बड़े परिवार से कहो, ‘तुम लोगों ने देखा कि मैं अपने शत्रुओं के साथ क्या कर सकता हूँ। तुम लोगों ने देखा कि मैंने मिस्र के लोगों के साथ क्या किया। तुम ने देखा कि मैंने तुम को मिस्र से बाहर एक उकाब की तरह पंखों पर बैठाकर निकाला। और यहाँ अपने समीप लाया। इसलिए अब मैं कहता हूँ तुम लोग मेरा आदेश मानो। मेरे साक्षीपत्र का पालन करो। यदि तुम मेरे आदेश मानोगे तो तुम मेरे विशेष लोग बनोगे। समस्त संसार मेरा है।

ख़ुरूज 19 :2,5

और दस अहकाम के फ़ौरन बाद यह आयत दी गई थी ।       

मूसा ने चर्म पत्र पर लिखे विशेष साक्षीपत्र को पढ़ा। मूसा ने साक्षीपत्र को इसलिए पढ़ा कि सभी लोग उसे सुन सकें और लोगों ने कहा, “हम लोगों ने उन नियमों को जिन्हें यहोवा ने हमें दिया, सुन लिया है और हम सब लोग उनके पालन करने का वचन देते हैं।”

निर्गमन 24: 7

तौरेत कि पांच किताबों में से आखरी किताब जिस में मूसा का आखरी वअज़ पाया जाता है उस में हज़रत मूसा ने शरी अत के अहकाम की बापंदी की बाबत इह तरह कहा :

24 यहोवा ने हमें इन सभी उपदेशों के पालन का आदेश दिया। इस प्रकार हम लोग यहोवा, अपने परमेश्वर का सम्मान करते हैं। तब यहोवा सदा हम लोगों को जीवित रखेगा और हम अच्छा जीवन बिताएंगे जैसा इस समय है। 25 यदि हम इन सारे नियमों का पालन परमेश्वर के निर्देशों के आधार पर करते हैं तो परमेश्वर हमें अच्छाईयों से भर देगा।’

इस्तिसना 6 :24-25

रास्त्बाज़ी हासिल करना

यहाँ फिर से रास्बाज़ी लफ्ज़ का इसतेमाल होता है । यह बहुत ही अहम् लफ्ज़ है । इस को सब से पहले हम ने आदम की निशानी में देखा था जब अल्लाह ने आदम कि औलाद से (हम से!) कहा था :

और उसी में से (और) उसी में से फिर दोबारा तुम ज़िन्दा करके निकाले जाओगे ऐ आदम की औलाद हमने तुम्हारे लिए पोशाक नाज़िल की जो तुम्हारे शर्मगाहों को छिपाती है और ज़ीनत के लिए कपड़े और इसके अलावा परहेज़गारी का लिबास है और ये सब (लिबासों) से बेहतर है ये (लिबास) भी ख़ुदा (की कुदरत) की निशानियों से है

सूरा अल । आराफ़ 7:26 (बुलंदियां

फिर इसको हमने इब्राहिम के निशान 2 में देखा था जब अल्लाह ने जब अल्लाह ने उस के लिए एक बेटे का वायदा किया था , और हज़रत इब्राहिम ने इस वायदे पर भरोसा किया और उस की बाबत इस तरह कहा गया

  अब्राम ने परमेश्वर पर विश्वास किया और परमेश्वर ने उसके विश्वास को एक अच्छा काम माना, शुमार किया ।

पैदाइश 15:6

(बराए मेहरबानी रास्त्बाज़ी की शरह के लिए इब्राहीम के निशान 2 को देखें)

यहाँ शरीअत के वसीले से रास्त्बाज़ी हासिल करने का एक तरीका पाया जाता है जिसतरह यहाँ कहा गया है ।“और अगर हम एहतियात रखें और ख़ुदा के हुज़ूर इन सब हुक्मों को मानें … तो इसी में हमारी सदाक़त

रास्त्बाज़ी) होगी।(इस्तिसना 6:25

मगर रास्त्बाज़ी हासिल करने कि शर्त सख्त है । कलाम कहता है , हमें ज़रुरत है कि ‘इन तमाम हुक्मों को मानें’ तब ही हम रास्त्बाज़ी हासिल करते हैं । यह हमको आदम की निशानी को याद दिलाती है ।इस के लिए नाफ़रमानी के एक अमल के चूक कि ज़रुरत थी जिस के सबब से अल्लाह तआला ने हज़रत आदम को बाग़ ।ए। अदन से निकाल बाहर करने का फ़ैसला लिया । जिस के लिए अल्लाह ने कई एक नाफार्मानी के अमल का इंतज़ार नहीं किया । लूत के निशान  में भी अल्लाह तआला ने यही बर्ताव लूत की बीवी से किया । इस संजीदगी को हक़ीक़त में समझने में मदद करने के लिए तौरेत की कई एक आयतें यहाँ पर जुड़ी हुई हैं जो इस बात पर ज़ोर देती हैं कि शरीअत की इताअत का असली मेयार क्या है ।

आइये हम सोचें कि इस का क्या मतलब है कभी कभार यूनिवर्सिटी के कोर्स में मैं यह गुमान करता हूँ कि प्रोफ़ेस्सर हमको इम्तहान में कई एक सवाल देगा , (मिसाल के तोर पर 25 सवालात) और उन में से हमको कुछ ही सवालात के जवाब देने होते हैं । मान लीजिये कि हम उन 25 में से 20 के ही जवाब दे पाते हैं । किसी के लिए एक सवाल बहुत ही मुश्किल होता है और वह उस को छोड़ देता है , इसी तरह दुसरे तालिबे इल्म के लिए दूसरा सवाल हाल करना मुश्किल हो जाता है और वह उसे छोड़ देता है ।इस तरह आप देखें कि प्रोफ़ेस्सर हमारे लिए इम्तहान आसान कर देता है ।

सो आप देखें कि कई लोग शरीअत के दस अहकाम के साथ भी कुछ ऐसा ही सुलूक करते हैं ।वह सोचते हैं कि अल्लाह ने जो हमें दस अहकाम दिए हैं इस का मतलब है कि हमको इन दस में से अपनी पसंद के 5 अहकाम को चुनना काफ़ी है ।मगर यह मामला ऐसा नहीं था । बल्कि बनी इस्राईल को तमाम अहकाम पर अमल करने की ज़रुरत थी ,यह नहीं कि अपनी पसंद के कुछ अहकाम पर । सो याद रखें कि तमाम अहकाम की इताअत ही रास्त्बाज़ी में उनकी मदद कर सकती थी ।

मगर क्यूं कुछ लोग शरीअत का इस तरह से सुलूक करते हैं ? इसलिए कि शरीअत की इताअत बहुत मुश्किल काम है ,ख़ास तोर से जबकि यह सिर्फ़ एक दिन के लिए नहीं बल्कि आप की पूरी ज़िन्दगी के लिए है । सो यह हमारे लिए आसान है कि खुद को धोका दें और अपने दर्जे को नीचा करें । इन अहकाम पर दुबारा से गौर करें । अपने आप से पूछें कि “क्या मैं इन तमाम अहकाम की पाबंदी कर सकता हूँ ? हर दिन ? बगैर चूक के ?” हमें खुद से यह सवाल इस सबब से करने कि ज़रुरत है क्योंकि दस अहकाम आज भी असर पिज़ीर है । अल्लाह ने इन अहकाम को दीगर नबियों तक मौखूफ़ नहीं किया बल्कि (ईसा अल । मसीह , हज़रत मोहम्मद (सल्लम) को शामिल करते हुए –  यहाँ देखें कि हज़रत मूसा के बाद भी जारी रखा गया । जबकि यह अहकाम बुनयादी हैं जैसे कि बुत परस्ती न करना, एक ख़ुदा कि इबादत करना ,जीना न करना चोरी न करना, खून न करना, झूट न बोलना वग़ैरा –  यह सब बे वक़्त तो हैं मगर हमको इन सब का पाबंद होना ज़रूरी है ।अच्छे और बुरे आमाल की बाबत किसी दुसरे शख्स के लिए कोई भी इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता । एक शख्स सिर्फ़ अपने लिए जवाब दे सकता है ।और वह अपने आमाल का फिर से अल्लाह के हुज़ूर इंसाफ़ के दिन जवाब देना होगा ।

अल्लाह के हुज़ूर तमाम ज़रूरी सवाल

सो मैं एक सवाल पूछूंगा जो इस्तिसना 6:25 से लिया गया है । इसलिए कि यह शख़सी है और आप अपने लिए इस का जवाब दे सकते हैं । यह शरीअत के इस बयान से आप के जवाब पर मुनहसर करते हुए है कि शरीअत के आमाल फ़रक़  फ़रक़ तरीके से आप पर क्या असर डालते हैं । सो आप उसी जवाब का चुनाव करें जो आप सोचते हैं कि वह आप की बाबत सच है । उन जवाबात पर किलिक करें जो आप पर नाफ़िज़ होते हैं ।

इस्तिसना 6:24-25 से हुक्म जो आप के लिए शख़सी बनाया गया है ।

“सो खुदावंद ने मुझको इन सब अहकाम पर अमल करने और हमेशा अपनी भलाई के लिए खुदावंद अपने ख़ुदा का खौफ़ मानने का हुक्म दिया है ताकि वह मुझको ज़िन्दा रखे जैसा आज के दिन ज़ाहिर है ।और अगर मैं एहतियात रखूं कि खुदावंद अपने ख़ुदा के हुज़ूर इन सब हुक्मों को मानूं जैसा उस ने मुझ से कहा है तो इसी में मेरी सदाक़त होगी”।

जी हाँ  यह मेरे लिए सच है ।

नहीं  मैं ने इन सब पर अमल नहीं किया है और यह मेरे लिए सच नहीं है ।             

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