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कुंवारी के बेटे का निशान

ज़बूर के तआरुफ़ में ने ज़िक्र किया था कि बादशाह और नबी हज़रत दाऊद (अलैहिस्सलाम) ने ज़बूर की किताब की तहरीरों का आग़ाज़ किया था और बाद के नबियों ने इस के साथ दीगर किताबों को भी शामिल किया था I एक बहुत ही अहम् नबी जिस का नाम बड़े नबियों में से एक गिना जाता है वह है यसायाह I (वह इसलिए कि उसकी किताब बहुत लम्बी है) I वह 750 क़ब्ल मसीह में रहा करता था I ज़ेल की वक़्त की लकीर बताती है कि जब यसायाह दीगर ज़बूर के नबियों के साथ किसतरह रहा किया I

ज़बूर में कुछ अन्य नबियों के साथ पैगंबर यशायाह (PBUH) की ऐतिहासिक समयरेखा

नबी हज़रत यसायाह (अलैहिस्सलाम) की तारीख़ी वक़्त की लकीर ज़बूर शरीफ़ के दीगर नबियों के साथ

हालाँकि यसायाह बहुत सालों पहले (लगभग 2800 साल पहले) रहते थे I उन्हों ने मुसतक़बिल के वाक़िये की पेशबीनी करते हुए कई एक नबुवतें कीं I जिस तरह हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) ने पहले कहा था कि एक

नबी को ऐसा करना चाहिए I उनकी नबुवत ने कुछ ऐसी अछम्बे में डालने वाली पेश्बीनी की जिसे कुरान शरीफ़ सूरा 66 यानि सूरा तहरीम आयत 12 में बयान करके इसे दुहराता है I

  और (दूसरी मिसाल) इमरान की बेटी मरियम जिसने अपनी शर्मगाह को महफूज़ रखा तो हमने उसमें रूह फूंक दी और उसने अपने परवरदिगार की बातों और उसकी किताबों की तस्दीक़ की और फरमाबरदारों में थी

सूरा अल तहरीम 66:12

सूरा तहरीम क्या बयान कर रहा है ? आइये हम यसायाह की नबुवत पर इसे समझने के लिए पीछे चलते हैं I

जिस तरह ज़बूर के तआरुफ़ में समझाया गया था , वह बादशाह जो हज़रत सुलेमान के पीछे चले , उनमें से बहुत से खराब थे और यसायाह के ज़माने में बादशाहों की यह बात सच साबित हुई I इस लिए उस की यह किताब आने वाले इंसाफ़ की बाबत कई एक तंबीह के लिए मशहूर है I जब येरूशलेम बाबुल के ज़रिये बरबाद कर दिया गया (तो उसके 150 साल बाद यसायाह की इस किताब की शुरुआत हुई —- तारीख़ के लिए यहां नक़शे को देखें) I किसी तरह उसने इस से भी बहुत आगे कई सारी बातों की नबुवत की और बहुत गहराई से मुस्तकबिल की तरफ़ देखा जब अल्लाह एक ख़ास निशान भेजने वाला था —- जो अब तक इनसानियत के लिए भेजा नहीं गया था I यसायाह इसराईल के बादशाह से मुख़ातब है जो हज़रत दाऊद (अलैहिस्सलाम) की नसल से था I इसी लिए इस निशान को ‘दाऊद के घराने’ से मुखाताब होते हुए दिखाई दिया था I

  13 तब उसने कहा, हे दाऊद के घराने सुनो! क्या तुम मनुष्यों को उकता देना छोटी बात समझकर अब मेरे परमेश्वर को भी उकता दोगे?
14 इस कारण प्रभु आप ही तुम को एक चिन्ह देगा। सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानूएल रखेगी।
15 और जब तक वह बुरे को त्यागना और भले को ग्रहण करना न जाने तब तक वह मक्खन और मधु खाएगा।

यसायाह 7:13 -15

यह यक़ीनी तो से एक दिलेराना पेशीन गोई थी !जो कि किसी ने भी कानों कान नहीं सुना था कि एक कुंवारी से बेटा होगा ? यह ऐसी हैरत नाक और ना क़ाबिल ए यक़ीन पेशबीनी थी कि कई सालों तक लोग इस पर यह कह कर हैरत ज़दह होते थे कि कहीं न कहीं गलती ज़रूर हुई है I मगर यह इस बतोर सच था कि एक शख्स जो यूँ ही मुस्तक़बिल की बाबत अन्दाज़ा लगाए वह उसे नहीं बताएगा न ही उसे हाथ से लिखकर उसकी दस्तावेज़ बनाएगा कि आने वाली नसल उसको पढ़े और उसका यक़ीन करे I क्यूंकि यह नामुमकिन दिखने वाली पेशबीनी मालूम पड़ती थी I मगर वह सच्ची पेशबीनी थी I और यह बहीरा ए मुरदार के तूमार हैं जो आज भी मौजूद हैंI हम जानते हैं कि यह कई सौ साल पहले की नबुवत है —- यानि हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के पैदा होने के कई सौ साल पहले के थे I

ईसा अल मसीह (अलैहिस्सलाम) के लिए नबुवत हुई कि वह कुंवारी से पैदा हो 

हम जिस ज़माने में जी रहे है हज़रत ईसा अल मसीह के आसमान पर उठाए जाने के बाद का ज़माना है जिस में हम उस के दुबारा आमद की नबुवत को देख सकते हैं I दूसरा कोई हज़रत इब्राहीम को शामिल करते हुए हज़रत मूसा और हज़रत मुहम्मद (सल्लम) इन में से कोई भी कुंवारी से पैदा नहीं हुए I तमाम बनी इंसान में से जो कभी पैदा हुए थे इस तरीक़े से दुनया में नहीं आए जिस तरीक़े से हज़रत ईसा दुनया में तशरीफ़ लाये सो अल्लाह तआला उसके पैदा होने कई सौ साल पहले ही उस के आने का निशाँ दे रहा था और हमें तय्यार कर रहा था कि कुंवारी के बेटे की आमद की बाबत कुछ बातें सेख जाएं I हम ख़ास तोर से दो बातें नोट करते हैं :

उस की मां उसका नाम ‘इम्मानुएल’ रखेगी

सब से पहले इस कुंवारी के बेटे का नाम उसकी मां की तरफ से ‘इम्मानुएल’ रखा जाएगा I इस नाम के लाफ्ज़ी मायने हैं ख़ुदा हमारे साथI मगर इसका क्या मतलब है ? इसके ग़ालिबन कई मायने थे , मगर जब इस नबुवत को शरीर बादशाहों के सामने एलान किया गया जिन का अल्लाह बहुत जल्द इंसाफ़ करने वाला था I एक ख़ास मतलब यह था कि  जब यह बेटा पैदा होने वाला होगा तो यह एक निशाँ था कि ख़ुदा इंसाफ की सूरत में आगे को उन के खिलाफ नहीं था बल्कि वह उन के साथ था I जब ईसा (अलैहिस्सलाम) पैदा हुए थे तो ऐसा लगता था कि दर असल अल्लाह ने बनी इस्राईल को छोड़ दिया था क्यूंकि उस वक़्त इसराईल में उनके दुशमन उनपर बादशाही करते थे I पर ऐसे हालात में कुंवारी से बेटे की पैदाइश एक निशान था कि ख़ुदा उन के साथ था I उन के खिलाफ़  नहीं था I लूक़ा की इंजील इस बात को क़लमबंद करती है कि बच्चे की मां ने (यानी कि मरयम ने) एक मुक़द्दस गीत गाया जब फ़रिश्ते ने उसके एक बेटा होने का पैग़ाम दिया I इस गीत को हम ज़ेल के हवाले में पाते हैं :

46 तब मरियम ने कहा, मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है।
47 और मेरी आत्मा मेरे उद्धार करने वाले परमेश्वर से आनन्दित हुई।
48 क्योंकि उस ने अपनी दासी की दीनता पर दृष्टि की है, इसलिये देखो, अब से सब युग युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे।
49 क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिये बड़े बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है।
50 और उस की दया उन पर, जो उस से डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है।
51 उस ने अपना भुजबल दिखाया, और जो अपने आप को बड़ा समझते थे, उन्हें तित्तर-बित्तर किया।
52 उस ने बलवानों को सिंहासनों से गिरा दिया; और दीनों को ऊंचा किया।
53 उस ने भूखों को अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया, और धनवानों को छूछे हाथ निकाल दिया।
54 उस ने अपने सेवक इस्राएल को सम्भाल लिया।
55 कि अपनी उस दया को स्मरण करे, जो इब्राहीम और उसके वंश पर सदा रहेगी, जैसा उस ने हमारे बाप-दादों से कहा था।

लूक़ा 1:46-55

आप देख सकते हैं कि मरयम को जब ख़बर पहुंचाया गया कि उसके बेटा होगा , हालाँकि वह कुंवारी थी , वह समझ गई थी कि खुदावंद ने हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) पर और उनकी नसल पर हमेशा के लिए रहम करने के लिए याद किया है I उसके इंसाफ़ का यह मतलब नहीं था कि अल्लाह आगे को फिर से बनी इसराईल के साथ कभी भी नहीं रहेगा I

कुंवारी का बेटा ‘बुराई का इनकार करता और भलाई का चुनाव करता है’

यसायाह में यह जो हैरत अंगेज़ नबुवत का हिस्सा है वह यह है कि यह लड़का दही और शहद खाएगा जब तक कि वह नेकी और बदी को रद्द ओ क़ुबूल के क़ाबिल हो I दुसरे  मायनों में यसायाह यह कह रहा है कि लड़का अपने शुऊर तक पहुच कर अपने ज़मीर के मुताबिक़ फ़ैसला लेने के क़ाबिल होगा I तब वह “नेकी और बदी के रद्द ओ क़ुबूल के काबिल हो जाएगा”I मेरा एक बेटा है I मैं उसको प्यार करता हूँ , मगर वह यक़ीनी तोर से इस काबिल नहीं कि गलत का इंकार करे और सही का चुनाव करे I इस के लिए मुझे और मेरी अहलिया को उस के पीछे पड़ना पड़ता है , सिखाना , याद दिलाना , डांटना , समझाना , नसीहत करना , मशवरा देना , एक नमूना बनना , तरबियत देना , अच्छे दोस्तों का इंतजाम करना , यह देखना कि क्या वोह एक मिसाली लड़का है कि नहीं वगैरा ताकि वह इस लायक़ हो जाए कि वह सही बातों का चुनाव करे और गलत का इनकार करे I और इन तमाम किये गए कोशिशों के बाद भी कोई ज़िम्मेदारी नहीं ले सकते I मां बाप होने के नारे जब मैं ऐसा करने की कोशिश कर रहा था तो यह मुझे अपने बचपन के ज़माने में ले गया जब मेरे मां बाप भी मुझे सिखाने के लिए कशमकश कर रहे थे ताकि मैं इस क़ाबिल हो जाऊं कि सही और ग़लत के बीच फ़ैसला कर सकूं I और अगर मांबाप अपने बच्चों के लिए कोशिश नहीं करते तो क़ुदरत पर छोड़ देते हैं तो बच्चा इस क़ाबिल नहीं रह जाता कि भाले और बुरे की तमीज़ कर सके I यह ऐसा होगा कि हम ‘दीनी अहमियत’ के लिए कशमकश कर रहे हों : जहाँ हम जैसे ही बंद करेंगे तो नीचे आजाएंगे I

इसी लिए हम अपने घरों और कमरों के दरवाजों पर ताले लगाते हैं ; क्यूँ हरेक मुल्क को पुलिस की ज़र्रत होती है ;क्यूँ हमारे बैंक की करवाई के लिए ख़ुफ़िया और पहचान के आंकड़े और अलफ़ाज़ की ज़रुरत होती है ; और क्यूँ तमाम मुल्कों में नए कानून नाफ़िज़ किये जाते हैं —- क्यूंकि हमें एक दूसरे के ख़िलाफ़ खुद की हिफाज़त करनी पड़ती है फिर भी हम बुराई का इनकार और भलाई का चुनाव नहीं करते हैं I

यहां तक कि नबी भी हमेशा ग़लत का इनकार और सही का चुनाव नहीं करते

और यह यहाँ तक कि यह बात नबियों कि बाबत सच है I तौरात कलमबंद करता है कि दो मौक़ों पर हज़रत इब्राहीम ने अपनी बीवी की बाबत झूट बोला कि वह उनकी बहिन थी (पैदाइश 12:10-13 —- 20:1-2) I यह बात भी क़लमबंद है कि हज़रत मूसा ने एक मिसरी का क़त्ल किया (ख़ुरूज 2:12) , और एक मौक़े पर उन्हों ने दुरुस्त तरीक़े से अल्लाह के हुक्म की ताबेदारी नहीं की (गिनती 20:6-12) I हज़रत मुहम्मद (सल्लम) को अल्लाह ने हुक्म फ़रमाया कि अपनी ग़लती के लिए मुआफ़ी मांगे (सूरा मुहम्मद सूरा 47) —- यह बताता है कि उन्हों ने खुद भी ग़लत का इनकार नहीं किया और सही का चुनाव नहीं किया I

  तो फिर समझ लो कि ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं और (हम से) अपने और ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों के गुनाहों की माफ़ी मांगते रहो और ख़ुदा तुम्हारे चलने फिरने और ठहरने से (ख़ूब) वाक़िफ़ है

सूरा मुहम्मद 47:19

ज़ेल की हदीस जो मुस्लिम की है यह बताती है कि किस मुस्तेद्दी के साथ हज़रत मुहम्मद (सल्लम) ने मुआफ़ी के लिए दुआ की I

अबू मूसा अश्हरी ने अपने वालिद साहिब के इख्तियार पर रिपोर्ट दी कि अल्लाह के नबी मुहम्मद (सल्लम) ने इन अलफ़ाज़ के साथ मिन्नत की :”ऐ अल्लाह मेरी ग़लतियों , मेरी ला इल्मी , और मेरे सरोकार रखने में मेरी मियाना रवी को  मुआफ़ फरमाएं I और ऐ अल्लाह तू मेरे खुद से ज़ियादा मेरे मामलात से वाक़िफ़ है I ऐ अल्लाह जो खताएं मैं ने कीं हैं चाहे वह संजीदा तोर से , ग़ैर इरादी तोर से या आज़ादी से किये हों उन्हें बख्श दे I यह सारी कमियाँ मुझ में है I ऐ अल्लाह मेरी ख़ताएं बख्श दे चाहे मैं उजलत में लिहाज़ करते हुए किये हों या फिर पोशीदगी में या सरे आम किये हों I मेरी शख्सी ज़िन्दगी से बेहतर तू मेरी ख़ताओं से वाक़िफ़ है I तू अव्वल ओ आखिर ख़ुदा है , तू क़ादिर ए मुतलक़ ख़ुदा है I

मुस्लिम 35:6563

यह बिलकुल हज़रत दाऊद (अलैहिस्सलाम) की दुआ की तरह है जब उन्हों ने अपने गुनाहों के लिए दुआ की थी I इसको हम इस तरह पढ़ते हैं :

”ऐ ख़ुदा अपनी शफ़क़त के मुताबिक़ मुझ पर रहम कर I अपनी रहमत कि कसरत के मुताबिक़ मेरी खताएं मिटा दे I मेरी बदी को मुझ से धो डाल और मेरे गुनाह से मुझे पाक कर I क्यूंकि मैं अपनी खताओं को मानता हूँ और मेरा गुनाह हमेशा मेरे सामने है I मैं ने फ़क़त तेरा ही गुनाह किया है और वह काम किया जो तेरी नज़र में बुरा है ताकि तू अपनी बातों में रास्त ठहरे और अपनी अदालत में बे ऐब रहे I देख मैं ने बदी में सूरत पकड़ी और मैं गुनाह की हालत में मां के पेट में पड़ा ……मेरे गुनाहों की तरफ़ से अपना मुंह फेर ले ले और मेरी सब बदकारी मिटा डाल I

ज़बूर शरीफ़ 51:1-9

सो हम देखते हैं कि यह लोग —- भले ही अंबिया थे —- गुनाह से जूझ रहे थे I गुनाह से वह मुआफ़ी मांगते थे क्यूंकि उन्हें मुआफ़ी की सख़त ज़रुरत थी I क्या यह ऐसा नहीं लगता कि गुनाह का मसला आदम की नसल के लिए (बनी आदम के लिए) एक आलमगीर मसला है I

कुंवारी का मुक़द्दस बेटा

मगरयह बेटा जो नबी यसायाह के ज़रिये नबुवत किया गया था I पैदा होने के शुरू से हीक़ुदरती तोर से ग़लत का इनकार करता और सही का चुनाव करता है I यह उस के लिए अन्दरूनी तहरीक थी I यह उस के लिए मुमकिन था इस लिए कि उसका सिलसिला ए नसब फ़रक होना था I दीगर तमाम अंबिया अपने अपने आबा ओ अजदाद के वसीले से थे , (नसब से थे) जो पीछे हज़रत आदम के ख़ाके की तरफ़ ले जाता है I और उसने “ग़लत का इनकार नहीं किया और सही का चुनाव नहीं किया था” जिसतरह हम ऊपर के बयानात में देख चुके हैं I जिसतरह बाप की फ़ितरत जिसमानी तनासुल के ज़रिये से उसकी औलाद में मुन्तक़ल होते हैं उसी तरह हज़रत आदम का यह बग़ावती फ़ितरत दुनया के तमाम लोगों में मुन्तक़ल हो गया था और यह यहाँ तक कि नबियों में भी फैल गया Iमगर जो कुंवारी से पैदा हुआ था नुमायाँ तोर पर एक बाप की तरह उसके सिलसिला ए नसब में आदम नहीं था I इस बेटे के आबा व अजदाद का सिलसिला फ़रक होना ज़रूरी था , इसलिए वह मुक़द्दस होगा I इसी लिए कुरान शरीफ़ जब मरयम के पास फ़रिश्ते के पैग़ाम की बाबत बताता है तो उसे “मुक़द्दस बेटा” करके हवाला देता है I

  (मेरे पास से हट जा) जिबरील ने कहा मैं तो साफ़ तुम्हारे परवरदिगार का पैग़मबर (फ़रिश्ता) हूँ ताकि तुमको पाक व पाकीज़ा लड़का अता करूँमरियम ने कहा मुझे लड़का क्योंकर हो सकता है हालाँकि किसी मर्द ने मुझे छुआ तक नहीं है औ मैं न बदकार हूँजिबरील ने कहा तुमने कहा ठीक (मगर) तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रमाया है कि ये बात (बे बाप के लड़का पैदा करना) मुझ पर आसान है ताकि इसको (पैदा करके) लोगों के वास्ते (अपनी क़ुदरत की) निशानी क़रार दें और अपनी ख़ास रहमत का ज़रिया बनायेंऔर ये बात फैसला शुदा है ग़रज़ लड़के के साथ वह आप ही आप हामेला हो गई फिर इसकी वजह से लोगों से अलग एक दूर के मकान में चली गई

सूरा 19:19 -22 सूरा मरयम

हज़रत यसायाह (अलैहिस्सलाम) का बयान बिलकुल साफ़ था और उसकी आगे की किताबें भी उस से रज़ामंद थीं—कि जो बेटा पैदा होने वाला था वह कुंवारी से होगा I इसतरह उस के कोई ज़मीनी बाप के न होने से उस में गुनाह की फ़ितरत नहीं थी और इस तेह वह ‘मुक़द्दस’ कहलाया I

जन्नत में हज़रत आदम की पिछली ज़ाहिरदारी

न सिर्फ़ बाद के आने वाली किताबें इस कुंवारी के बेटे की बाबत बताती हैं बल्कि यह भी बताती हैं कि उस का वजूद शुरू से ही था यानि कि वह पहले से ही मौजूद था I हम ने आदम कि निशानी में देखा था कि अल्लाह ने शैतान से  एक वायदे कि बात की थी कि ;

15 और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करुंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।

पैदाइश 3:15

अल्लाह ऐसा  इंतज़ाम करेगा कि इब्लीस और औरत कि एक नसल हो I इन दोनों के नसल के बीच दुश्मनी या नफ़रत होगी यानि औरत की नसल और शैतान की नसल के बीच I शैतान की नसल औरत की नसल को एढ़ी पर काटेगा और औरत की नसल शैतान के सर को कुचलेगा I इन रिश्तों को ज़ेल के नक्शे में देखा जा सकता है I

शख्सियतें और उनके ताल्लुक़ात जो अल्लाह के वायदे में जन्नत में दिए गए थे

बराए मेहरबानी नोट करें कि अल्लाह ने कभी भी आदमी को एक नसल का वायदा नहीं किया जिसतरह से वह औरत से करता है I यह बिलकुल ग़ैर मामूली है ख़ास तोर से बापों के ज़रिये तौरात ज़बूर और इंजील (अल किताब बाइबिल का वसीले से बेटों के होने पर जोर दिया गया है I डर असल इन किताबों की एक नुक्ता चीनी जो मौजूदा मगरीबी लोगों की तरफ़ से है कि उन्हों ने उस खून के रिश्ते को  नज़र अंदाज़ किया है जो औरतों से होकर जाती है I उन कि नज़रों में यह सब से ज़ियादा जिंसी है क्यूंकि यह सिर्फ़ आदमियों के बेटों पर धियान देते हैं I मगर यह मामला फ़रक है —– यहाँ नसल का वायदा एक (मुज़क्कर) नहीं है जो औरत से है I बल्कि यह वायदा सिर्फ़ यह कहता है कि आने वाला नसल , बगैर एक आदमी का ज़िक्र करते हुए एक औरत से होगा I

यसायाह का “कुंवारी का बेटा” औरत की नसल से है

अब यसायाह नबी की नबुवत जो कुंवारी से एक बेटे की बाबत है उसका ज़ाहिरी तनासुब बिलकुल साफ़ मायने रखता है I यहां तक कि बहुत अरसा पहले जिस नसल (बेटे) की बाबत कही वह सिर्फ़ एक औरत से ही होगी I (इसतरह यह कुंवारी को ज़ाहिर करता है I मैं आप को तवज्जा दिलाता हूँ कि आप पीछे जाएं और आदम की निशानी में इस बहस का मुताला करेंI इस ज़ाहिरी तनासुब में आप देखेंगे कि यह इस में माक़ूल बैठता है I तारीख़ के शुरू से लेकर अब तक आदम के तमाम बेटे इसी मसले से जूझ रहे हैं और वह मसला है “गलत का इनकार न करना और सही चुनाव न करना” जिस तरह हमारे बाप दादा ने किया था I जब अल्लाह ने देखा कि गुनाह दुनया में दाखिल हो चुका है तब उस ने वायदा किया कि एक शख्स आएगा जो आदम से नहीं होगा I वह मुक़द्दस होगा और वह शैतान का सर कुचलेगा I

मगर यह मुक़द्दस बेटा इसे कैसे करने जा रहा था ? अगर यह अल्लाह की तरफ़ से पैग़ाम देने वाली बात थी तो दीगर अंबिया जैसे हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) और हज़रत मूसा (अलैहिस्सलाम) पहले से ही ईमानदारी से पैग़ाम दे चुके होते I नहीं ! इस मुक़द्दस बेटे का किरदार फ़रक़ था मगर इसे समझने के लिए हमको ज़बूर ए शरीफ़ में आगे रुजू’  करने की ज़रुरत पड़ेगी I

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