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एक चोंका देने वाले तरीक़े से, एक फ़रक़ दुश्मन के लिये, हज़रत ईसा अल मसीह– जिहाद का ऐलान करते हैं

सूरा अत –तौबा (सूरा 9 — तौबा करना , तक़दीरे इलाही) बहस पैदा करता है जबकि यह जिहाद या जिददो जहद की बाबत बहस करता है I यह आयतें जिस्मानी जंग के लिये रहनुमाई करते हैं इसलिए इन आयतों की बाबत कई एक उलमा के ज़रिये फ़रक़ फ़रक़ तर्जुमे पेश किए गए हैं I सूरा अत – तौबा की आयत जो बहस करती है वह है :         

 (मुसलमानों) तुम हलके फुलके (हॅसते) हो या भारी भरकम (मसलह) बहर हाल जब तुमको हुक्म दिया जाए फौरन चल खड़े हो और अपनी जानों से अपने मालों से ख़ुदा की राह में जिहाद करो अगर तुम (कुछ जानते हो तो) समझ लो कि यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है(ऐ रसूल) अगर सरे दस्त फ़ायदा और सफर आसान होता तो यक़ीनन ये लोग तुम्हारा साथ देते मगर इन पर मुसाफ़त (सफ़र) की मशक़क़त (सख्ती) तूलानी हो गई और अगर पीछे रह जाने की वज़ह से पूछोगे तो ये लोग फौरन ख़ुदा की क़समें खॉएगें कि अगर हम में सकत होती तो हम भी ज़रूर तुम लोगों के साथ ही चल खड़े होते ये लोग झूठी कसमें खाकर अपनी जान आप हलाक किए डालते हैं और ख़ुदा तो जानता है कि ये लोग बेशक झूठे हैं

सूरा अत –तौबा 9: 41 -42

(मुसलमानों) तुम हलके फुलके (हॅसते) हो या भारी भरकम (मसलह) बहर हाल जब तुमको हुक्म दिया जाए फौरन चल खड़े हो और अपनी जानों से अपने मालों से ख़़ुदा की राह में जिहाद करो अगर तुम (कुछ जानते हो तो) समझ लो कि यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है ।
(ऐ रसूल) अगर सरे दस्त फ़ायदा और सफर आसान होता तो यक़ीनन ये लोग तुम्हारा साथ देते मगर इन पर मुसाफ़त (सफ़र) की मषक़क़त (सख़्ती) तूलानी हो गई और अगर पीछे रह जाने की वज़ह से पूछोगे तो ये लोग फौरन ख़़ुदा की क़समें खाएगें कि अगर हम में सकत होती तो हम भी ज़रूर तुम लोगों के साथ ही चल खड़े होते ये लोग झूठी कसमें खाकर अपनी जान आप हलाक किए डालते हैं और ख़ुदा तो जानता है कि ये लोग बेषक झूठे हैं।

सूरा अत तौबा की 42 आयत में जो मलामत है वह इस लिये कि अगर जंग के लिये सफ़र आसान था तो वह पीछा करेंगे ,मगर जो जिददो जहद करना चाहते हैं वह मुश्किल पड़ने पर गाइब हो जाएंगे I सिलसिलेवार आयतें  उन पैरुओं (मुरीदों) के बहानों और बहस का बयान करते हैं जो बे दिल थे I सूरा अत –तौबा फिर इस याद दाश्त को पेश करता है I

(ऐ रसूल) तुम मुनाफिकों से कह दो कि तुम तो हमारे वास्ते (फतेह या शहादत) दो भलाइयों में से एक के ख्वाह मख्वाह मुन्तज़िर ही हो और हम तुम्हारे वास्ते उसके मुन्तज़िर हैं कि ख़ुदा तुम पर (ख़ास) अपने ही से कोई अज़ाब नाज़िल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो हम भी तुम्हारे साथ (साथ) इन्तेज़ार करते हैं

सूरा अत –तौबा 9:52

(ऐ रसूल) तुम मुनाफिकों से कह दो कि तुम तो हमारे वास्ते (फतेह या शहादत) दो भलाइयों में से एक के ख़्वाह मख़्वाह मुन्तजि़र ही हो और हम तुम्हारे वास्ते उसके मुन्तजि़र हैं कि ख़़ुदा तुम पर (ख़ास) अपने ही से कोई अज़ाब नाजि़ल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो हम भी तुम्हारे साथ (साथ) इन्तेज़ार करते हैं।

दो मुमकिन नतीजों की बिना पर आम तोर से मलामत और तंबीह की जाती है : मौत (शहादत) या फ़तेह I पर अगर जब कश्मकश बहुत ज़ियादा बड़ी हो कि दोनों नतीजे सामने आजाएँ – यानी शहादत और फ़तेह दोनों I यह कश्मकश थी नबी हज़रत ईसा अल मसीह की जब उनहों ने येरूशलेम के उस लंबे सफ़र में सामना किया — उनके वहाँ पहुँचने पर नए चाँद या हिलाल के ज़रिये जो नबुवत की गई थी वह ज़बूर के नबियों के ज़रिये सदियों साल पहले की गई थी I       

येरूशलेम में दाखिल होना

सूरा अल – इसरा (सूरा 17— रात का सफ़र) एक जाना पेहचाना सूरा है जबकि वह नबी हज़रत मोहम्मद सल्लम के रात के सफ़र का बयान करता है , जिसमें वह अकेले रात के वक़्त में बुर्राक़ में सवार होकर मक्का पहुंचे थे I                 

वह ख़ुदा (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है जिसने अपने बन्दों को रातों रात मस्जिदुल हराम (ख़ान ऐ काबा) से मस्जिदुल अक़सा (आसमानी मस्जिद) तक की सैर कराई जिसके चौगिर्द हमने हर किस्म की बरकत मुहय्या कर रखी हैं ताकि हम उसको (अपनी कुदरत की) निशानियाँ दिखाए इसमें शक़ नहीं कि (वह सब कुछ) सुनता (और) देखता है

सूरा अल – इसरा 17:1

वह ख़ुदा (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है जिसने अपने बन्दों को रातों रात मस्जिदुल हराम (ख़ान ऐ काबा) से मस्जिदुल अक़सा (आसमानी मस्जिद) तक की सैर कराई जिसके चैगिर्द हमने हर किस्म की बरकत मुहय्या कर रखी हैं ताकि हम उसको (अपनी कुदरत की) निशानियाँ दिखाए इसमें शक नहीं कि (वह सब कुछ) सुनता (और) देखता है

रात के सफ़र की तरह हज़रत ईसा अल मसीह बिलकुल उसी जगह को जा रहे थे I मगर हज़रत ईसा अल मसीह कुछ दूसरा ही मक़सद था I मोजिजे दिखाने के बदले हज़रत ईसा अल मसीह खुद एक मोजिज़ा होने के लिये गए I हज़रत ईसा अल मसीह मोजिज़ों के इज़हार के लिये येरूशलेम में दाखिल हुए I सो वह रात के बदले दिन में सरे आम लोगों के बीच में नज़र आए वह बुर्राक़ के बदले एक गधी पर सवार थे I हालांकि हम नहीं सोच सकते कि उनका गधी पर सवार कर आना बुर्राक़ पर सवार होकर आने जैसा ता’ससुर रखता था , मगर उस दिन हज़रत मसीह का गधीपर सवार होकर येरूशलेम के हैकल में दाखिल होना लोगों के लिये साफ निशानी थी I हम समझाते हैं कि किस तरह I       

नबी हज़रत ईसा अल मसीह ने लजार को मुरदों में से जिलाकर अपनी खिदमत गुज़ारी का इज़हार कर चुके थे और अब उनका सफ़र येरूशलेम (अल कुदुस) कि तरफ था I जिस तरीक़े से वह येरूशलेम में दाखिल हुए थे उसकी नबुवत सदियों साल पहले हो चुकी थी I इंजीले शरीफ़ इसे इस तरह समझाती है :   

12 दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आता है।
13 खजूर की, डालियां लीं, और उस से भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, कि होशाना, धन्य इस्त्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है।
14 जब यीशु को एक गदहे का बच्चा मिला, तो उस पर बैठा।
15 जैसा लिखा है, कि हे सिय्योन की बेटी, मत डर, देख, तेरा राजा गदहे के बच्चा पर चढ़ा हुआ चला आता है।
16 उसके चेले, ये बातें पहिले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उन को स्मरण आया, कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुई थीं; और लोगों ने उस से इस प्रकार का व्यवहार किया था।
17 तब भीड़ के लोगों ने जो उस समय उसके साथ थे यह गवाही दी कि उस ने लाजर को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया था।
18 इसी कारण लोग उस से भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना था, कि उस ने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है।
19 तब फरीसियों ने आपस में कहा, सोचो तो सही कि तुम से कुछ नहीं बन पड़ता: देखो, संसार उसके पीछे हो चला है॥  

यूहनना 12:12-19

हज़रत ईसा अल मसीह का दाखिल होना – ब क़ौल हज़रत दाऊद था

हज़रत दाऊद से शुरू करते हुए क़दीम यहूदी बादशाह साल में एक बार अपने शाही घोड़े पर सवार होते थे और येरूशलेम में लोगों के एक जुलूस की रहबरी करते थे I हज़रत ईसा अल मसीह ने इस रिवाज को दुहराया और एक गधी पर सवार होकर उस दिन जिसे खजूरी इतवार कहा जाता है येरूशलेम में दाखिल हुआ I लोगों ने ज़बूर शरीफ से ईसा अल मसीह के लिए वही गीत गाया जो उनहों ने हज़रत दाऊद के लिए गाया था :   

25 हे यहोवा, बिनती सुन, उद्धार कर! हे यहोवा, बिनती सुन, सफलता दे!
26 धन्य है वह जो यहोवा के नाम से आता है! हम ने तुम को यहोवा के घर से आशीर्वाद दिया है।
27 यहोवा ईश्वर है, और उसने हम को प्रकाश दिया है। यज्ञपशु को वेदी के सींगों से रस्सियों बान्धो!  

ज़बूर 118:25-27

लोगों ने इस क़दीम गाने को गाया जो बादशाहों के लिए लिखा गाया था क्यूंकि वह जानते थे कि हज़रत ईसा ने लाज़र को मुरदों में से जिलाया था , और इस लिए उसके येरूशलेम में दाखिल होने पर बर – अंगेख्ता थे जिस लफ्ज का वह ना’रा लगा रहे थे , वह था ‘होशा’ना’ जिस के माने हैं ‘हमें बचा’—बिलकुल उसी तरह जिस तरह ज़बूर 118:25 में बहुत पहले लिखा गाया था I वह किस बात से उन्हें बचाने जा रहे थे ? हज़रत ज़करियाह हम से कहते हैं I

इस दाख़िले की बाबत हज़रत ज़करियाह की नबुवत   

हालांकि हज़रत ईसा अल मसीह ने दोबारा से उस रिवाज को वज़ा दी जो पहले के बादशाहों ने सदियों साल पहले अंजाम दी थी इसको उनहों ने फ़रक़ तोर से अंजाम दी I नबी हज़रत ज़करियाह ने जिस मसीह के नाम से आने की नबुवत की थी उनहों ने यह भी नबुवत की कि वह मसीह एक गधी पर सवार होकर येरूशलेम में दाखिल होगा I वक़्त की लकीर ज़करियाह नबी को तारीख़ में दीगर नबियों के साथ दिखाती है जिन्हों ने खजूरी इतवार के वाक़ि आत की पेशबीनी की थी I   

वह अँबिया जिन्हों ने हज़रत ईसा के खजूरी इतवार को येरूशलेम में दाखिल होते हुए पहले से देखा था

नबुवत का वह हिस्सा जो यूहनना की इंजील में (ऊपर नीले रंग की इबारत में) हवाला दिया गाया था I हज़रत ज़करियाह की पूरी नबुवत यहाँ दर्ज की गई है :   

9 हे सिय्योन बहुत ही मगन हो। हे यरूशलेम जयजयकार कर! क्योंकि तेरा राजा तेरे पास आएगा; वह धर्मी और उद्धार पाया हुआ है, वह दीन है, और गदहे पर वरन गदही के बच्चे पर चढ़ा हुआ आएगा।
10 मैं एप्रैम के रथ और यरूशलेम के घोड़े नाश करूंगा; और युद्ध के धनुष तोड़ डाले जाएंगे, और वह अन्यजातियों से शान्ति की बातें कहेगा; वह समुद्र से समुद्र तक और महानद से पृथ्वी के दूर दूर के देशों तक प्रभुता करेगा॥
11 और तू भी सुन, क्योंकि मेरी वाचा के लोहू के कारण, मैं ने तेरे बन्दियों को बिना जल के गड़हे में से उबार लिया है।

ज़करियाह 9:9—11

नबी ज़करियाह के जरिये इस बादशाह की नबुवत की गई थी कि यह दीगर बादशाहों से फ़रक़ होगा I वह ऐसे बादशाहों की तरह नहीं आएगा जो ‘रथों’, ‘जंगी घोड़ों’ , और ‘जंगी तीर कमानों’ का इस्तेमाल करते हों I दर असल यह बादशाह इन औज़ारों को खारिज करेगा बल्कि इस के बदले वह ‘क़ौमों में सलामती की मनादी करेगा’I किसी तरह यह बादशाह अभी भी एक दुश्मन को शिकस्त देने के लिए कशमकश करेगा I उसको जिददो जहद करनी पड़ेगी जिस तरह एक बड़े जिहाद (जंग) में की जाती है I                                                       

यह साफ़ है जब हम दुश्मन को पहचान जाते हैं जिस से इस बादशाह को सामना करना था I हसबे मामूल तरीक़े से ,एक बादशाह का दुश्मन दूसरी क़ौम का मुकाबला करने वाला बादशाह होता है , या दूसरी फ़ौज य ,या उसी के लोगों में से बगावती लोग या फिर वह लोग जो उसके मुखालिफ़ होते हैं I मगर नबी हज़रत ज़करियाह ने लिखा कि बादशाह ‘सलामती की मनादी करते हुए’ एक ‘गधी’ पर ज़ाहिर हुआ था और ‘वह असीरों को अंधे कुएं से निकाल लाने वाला था’ (आयत11) I ‘अंधा कुआं’ या ‘गढ़ा’ इबरानी तोर तरीक़े से क़बर , या मौत का हवाला दिया जाता है बादशाह उन असीरों को आज़ाद करने वाला था , न कि हाकिमों , बिगड़े हुए सियासत दानों को और इन्सानों के बनाए क़ैदियों को बल्कि उन्हें जो मौत के ‘गुलाम’ थे I [1]  

हम लोगों को मौत से बचाने कि बात करते हैं तो हमारा मतलब है किसी उस शख्स को बचाना ताकि उसकी मौत मुल्तवी होजाए I मिसाल के तोर पर हम किसी शख्स को पानी मे डूबने से बचा सकते हैं ,या किसी की जिंदगी बचाने के लिए कोई द्वाई का इंतिज़ाम करते हैं I यह ‘बचाना’ सिर्फ़ मौत को मुल्तवी करना होता है ताकि जो बच गया है वह बाद में मरेगा I मगर हज़रत ज़करियाह लोगों को मौत से बचाने की बाबत नाबूवत नहीं कर रहे थे मगर उन लोगों को बचाने की बाबत जो मौत की क़ैद में थे -– यानी वह लोग जो पहले से ही मरे हुए थे I वह बादशाह जो गधी पर सवार था जिसकी बारे नबुवत हज़रत ज़करियाह ने की थी उसे मौत का सामना करना था और खुद उसको हराना भी था – ताकि वह दूसरों को जो मौत की क़ैद में थे उन्हें आज़ाद कराए I इस के लिए गैर मामूली तोर पर जिददो जहद की ज़रूरत है — एक जंग जो पहले कभी देखि नहीं गई थी I बाइबल के उलमा कभी कभी हमारी बातिनी कश्मकश को एक ‘बड़े जिहाद’ का और बाहरी कश्मकश को ‘कम जिहाद’ का हवाला देते हैं I उस मौत के ‘गढ़े’ का मुक़ाबला करते हुए यह बादशाह इन दोनों कश्मकश या जिहादों से होकर गुज़रेगा I        

अब सवाल यह है कि बादशाह मौत के साथ इस जिहाद या कश्मकश में किन औजारों का इस्तेमाल करेगा ? हज़रत ज़करियाह ने लिखा कि यह बादशाह सिर्फ़ ‘मेरे अहद का खून अपने साथ लेगा’ उसके जंग के लिए उस मौत के गढ़े में I सो उसका अपना ही खून औज़ार साबित होगा जिस से वह मौत का सामना करेगा I   

गधी पर सवार होकर येरूशलेम में दाखिल होने के जरिये हज़रत ईसा ने खुद को यह बादशाह होने का ऐलान किया – मसीह

क्यूँ हज़रत ईसा अल मसीह गम के साथ रोते हैं

खजूरी इतवार के दिन जब हज़रत ईसा अल मसीह येरूशलेम में दाखिल हुए तो इसे (फ़तहमंदाना दाखिला बतोर भी जाना जाता है) मज़हबी रहनुमाओं ने इसका तखालुफ़ किया I लूक़ा की इंजील उनके इस तखालुफ़ के जवाब का बयान करती है I   

41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया।
42 और कहा, क्या ही भला होता, कि तू; हां, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आंखों से छिप गई हैं।
43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएंगे कि तेरे बैरी मोर्चा बान्धकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएंगे।
44 और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तू ने वह अवसर जब तुझ पर कृपा दृष्टि की गई न पहिचाना॥

लूक़ा 19:41-44

हज़रत ईसा अल मसीह ने खास तोर से रहनुमाओं से कहा कि ‘इस दिन’ खुदा के आने के वक़्त को पहचाने’ I इस से उन का क्या मतलब था ? लोग किस बात के करने से न काम हुए थे ?

उस ख़ास दिन की बाबत नबियों ने नबुवत की थी

सदियों पहले नबी हज़रत दानिएल ने नबुवत की थी कि मसीह फ़रमान जारी करने के 483 साल बाद आएगा ताकि येरूशलेम की दुबारा से तामीर करे I दानिएल के तवकक्क़ो किये हुए साल का हम ने हिसाब लगाया था तो वह 33  ईसवी होना चाहिए था I जिस साल हज़रात ईसा अल मसीह गधी पर सवार होकर येरूशलेम में दाखिल हुए थे I दाख़िले के साल की पेश्बीनी करते हुएसदियों साल पहले जो वाक़े हुआ वह सच मुच हैरत ज़दा है I मगर उस दिन के लिए वक़्त का हिसाब किया जा सकता है I जिसका हम ने हिसाब लगाया बराए मेहरबानी यहाँ सबसे पहले नज़रे सानी करें I       

दानिएल नबी ने जो 483 साल की पेशबीनी की थी वह मसीह के ज़ाहिर होने से पहले साल के 360 दिन के हिसाब से की थी I उसके मुताबिक़ दिनों की तादाद है :

483 साल *360 दिन /साल के =173880 दिन 

मौजूदा बैनुल अक़वामी केलंडर के हिसाब से 365.2422 दिन /साल यह 476 साल मज़ीद 25 के साथ I (173 880 /365.24219879 = 476 बचा हुआ 25)     

येरूशलेम की बहाली के लिए कब फ़रमान जारी होना था जिस से यह गिनती शुरू हुई थी ? यह दिया हुआ था :

अखोयरस बाशाह के 21वें साल के दौरान निसान के महीने में …

नहेमियाह 2:1

निसान (जो यहूदी केलंडर का एक महिना है) उसके कौनसे दिन यह नहीं दिया गया है, मगर उसकी पहली तारीख का अंदाज़ा लगाया जाता है क्यूंकि वह नए साल का पहला दिन था, एक जश्न के मौके पर नहेमियाह को बादशाह से इजाज़त लेना था I निसान का पहला दिन एक नए चाँद के तरफ़ भी इशारा करता है जबकि महीने चाँद के हिसाब से होते थे (जिसतरह इस्लामी कैलंडर होता है) मुस्लिम रिवायत के तरीके से नए चाँद का मुअय्यन किया जाता है I इसके लिए तीन ईमानदार बुज़ुर्ग लोग चुने जाते हैं जिन्हों ने (हिलाल) यानी नए चाँद को देखा है I मौजूदा इल्मे फ़ल्कियात के ज़रिये से हम जानते हैं कि उस दिन जो नया चाँद निशाँ दिही कर रहा था वह निसान की पहली तारीख़ 444 क़बल मसीह में पहली ज़ाहिरी थी I यह जानना मुश्किल होता है कि देखने वालों के ज़रिये वह पहला चाँद था या दूसरा I अगर दूसरा होगा तो एक दिन देर होजाएगा I फ़ल्कियात के हिसाब से निसान का पहला चाँद फ़ारस के शाहिंशा अखोयरस के 20 वें साल में तय हुआ था जो मौजूदा कैलंडर [2] के हिसाब से 4  मार्च 444 क़ब्ल मसीह को शाम के 10 बजे थे I              

दानिएल के नबुवत के वक़्त से लेकर इस तारीख़ तक 4 या 5 मार्च,33 ईस्वी पड़ता है I (मौजूदा कैलंडर में 1- क़ब्ल मसीह से लेकर1-ईस्वी तक कोई 0 साल नहीं है सो इसका हिसाब है :- 444 +476 +1 =33) दानिएल के नबुवत किये हुए वक़्त के बचे हुए 25 को जोड़ते हुए 33 ईस्वी का 4 या 5 मार्च हमें देता है 33 ईस्वी का 29 या 30 मार्च , जिसतरह से ज़ेल की मिसाल पेश की गयी है I मार्च 29, 33 ईस्वी—इतवार पड़ा था –यानी कि खजूरी इतवार – यही वह दिन था जब हज़रात ईसा अल मसीह, मसीहा का दावा करते हुए गधी पर सवार होकर येरूशलेम में दाख़िल हुए थे I हम यह जानते हैं इसलिए कि उसके बाद का जुमे का दिन फ़सह की ईद थी – और फ़सह हमेशा निसान के महीने की 14 को पड़ता है I 33 ईस्वी में निसान का 14 तारीख 3 अप्रैल था I पांच दिन पहले होने से 3 अप्रैल जुमे का दिन, और खजूरी इतवार था 29 मार्च I        

मार्च 29,33 ईस्वी को गधी पर सवार होकर येरूशलेम में दाखिल होते हुए नबी हज़रत ईसा अल मसीह ने उस दिन ज़करियाह नबी और दानिएल नबी दोनों की नबुवत को पूरा किया I इसको ज़ेल की तारीख़ी वक़्त की लकीर में मिसाल बतोर पेश किया गया है I   

दानिएल नबी ने मसीह के ज़ाहिर होने के 173880 दिन पहले पेश्बीनी की थी ; नबीनहेमियाह ने वक़्त की शुरुआत की थी I और वह 33 ईस्वी 29 मार्च को ख़त्म हुई जब हज़रात ईसा खजूरी इतवार के दिन येरूशलेम में दाखिल हुए I

ऐसी कई एक नबुवतें एक दिन में पूरी हुईं जो साफ़ निशानियों को बताता है अल्लाह ने मसीह की बाबत अपने मंसूबे को इन्किशाफ़ करने के लिए इस्तेमाल किया I मगर बाद में उसी दिन इसा अल मसीह ने यहाँ तक कि हज़रत मूसा की दूसरी नबुवत को पूरा किया I ऐसा करते हुए उन्हों ने वाक़िआत को तजवीज़ में ले आया ताकि उस ‘गढ़े’ के साथ जो उसका दुश्मन मौत है अपने जिहाद की तरफ़ ले जाए – हम इसे अगली तहरीर में देखते हैं I    


 [1] कुछ मिसालें कि किस्तरह गढ़ा नबियों के लिए मौत का मतलब पेश करता है :

15 परन्तु तू अधोलोक में उस गड़हे की तह तक उतारा जाएगा।

यसायाह 14:15

  18 क्योंकि अधोलोक तेरा धन्यवाद नहीं कर सकता, न मृत्यु तेरी स्तुति कर सकती है; जो कबर में पड़ें वे तेरी सच्चाई की आशा नहीं रख सकते

यसायाह 38:18

  22 निदान वह कबर के निकट पहुंचता है, और उसका जीवन नाश करने वालों के वश में हो जाता है।

अय्यूब 33:22

  8 वे तुझे कबर में उतारेंगे, और तू समुद्र के बीच के मारे हुओं की रीति पर मर जाएगा।

हिज़िक़िएल 28:8

23 उसकी कबरें गड़हे के कोनों में बनी हुई हैं, और उसकी कबर के चारों ओर उसकी सभा है; वे सब के सब जो जीवनलोक में भय उपजाते थे, अब तलवार से मरे पड़े हैं।

हिज़िक़िएल 32:23

  3 हे यहोवा, तू ने मेरा प्राण अधोलोक में से निकाला है, तू ने मुझ को जीवित रखा और कब्र में पड़ने से बचाया है॥

ज़बूर30:3

 [2] क़दीम और मौजूदा कैलन्डरों के बीच तब्दीली के लिए (मिसाल बतोर निसान 1 = 4 मार्च, 444 कबल मसीह) और क़दीम नये चांदों का हिसाब लगाने के लिए मैं डॉ – हेरोल्ड डब्लू होयेनेर जो मसीह की जिंदगी के तारीख़ी वाक़िआ के पहलू के माहिर है ,1977.176pp —उनकी ख़िदमत का इस्तेमाल करता हूँ I    

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